ll श्री चंद्रप्रभु भगवान की जय ll
।। इस अतिशय क्षेत्रपर और सभी स्थावर जंगम मालमत्ता पर दिगंबर जैन समाजकाही सर्व अधिकार है ।।
।। क्षेत्रपर दिये हुए दान का उपयोग दिगंबर जैन अम्नाय के अनुसार ही होगा ।।
मांडल अतिशय क्षेत्र मांगीतुंगीजी सिद्धक्षेत्र से 117 किमी. गजपंथा से 183 किमी. तथा कचनेरजी से 209 किमी. की दूरी पर स्थित है। मांडल गांव में श्री 1008 चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर 1500 साल पुराना है। दि. 13-01-1999 को प. पू. गणाधिपति गणधराचार्य 108 श्री कुंथुसागरजी महाराज मांडल पधारे थे। उन्होंने चंद्रप्रभु भगवान एवं पंचमुखी क्षेत्रपाल बाबा का अतिशय देखकर मंदिर को अतिशय क्षेत्र घोषित किया।
❁ अतिशय क्षेत्र मांडल गांव का संक्षिप्त परिचय ❁
वीतरागी देव हमेशा घने जंगलों, पहाड़ों या छोटे-छोटे गांवों में ही बसे हुए हैं। उन्हीं में से महाराष्ट्र राज्य में जलगांव जिले में अमलनेर तालुका में एक छोटा-सा गांव मांडल नगरी, जो पूर्व खान्देश के नाम से भी प्रचलित हैं। जो पांझरा नदी के विशाल तट पर बसा हुआ 1500 वर्ष पुराना अति प्राचीन दिगंबर जैन मंदिर हैं। जिसमें चतुर्थकालीन मूलनायक भगवान चंद्रप्रभु की अतिशय प्राचीन मूर्ति अति चमत्कारी, मनको प्रसन्न करनेवाली एवं मनोकामना पूर्ण करनेवाली मनमोहक प्रतिमा हैं। मूलनायक चंद्रप्रभु के दाईं तरफ श्री 1008 अजितनाथ भगवान तथा बाईं ओर श्री 1008 मुनिसुव्रतनाथ भगवान विराजमान हैं और अतिशय करनेवाले पंचक्षेत्रपाल बाबा भी अत्यंत जागृत हैं। यहां के मंदिर के अतिशय का अनुभव तो यहां के स्थित जैन श्रावकगण तथा मंदिर के पास-पड़ोसवाले अजैन श्रावकों को काफी समय से हो रहा हैं। वेदी के पिछले भाग में दीवार की अलमारी में पद्मावती माता एवं पास में चंद्रप्रभु भगवान की यक्षिणी ज्वालामालिनी माता विराजमान हैं। एक तरफ कोने में पुरानी चरणपादुका विराजमान हैं।
एक वेदी पर जय, विजय, अपराजित, भैरव व मणिभद्र ये पंचक्षेत्रपाल बाबा विराजमान हैं। जो आज भी इस मंदिर में जागृत हैं। अमावस्या की आधी रात को नृत्य, गायन, डमरू, घुंघरु आदि की आवाजे सुनाई देती हैं और ऐसा लगता है कि मूलनायक भगवान की पंच क्षेत्रपाल बाबा आरती करते होंगे और मंदिर में मूलनायक भगवान का दिव्य प्रकाश प्रकाशित होकर अदृश्य हो जाता हैं। इस पंच क्षेत्रपालजी का बहुत ही अतिशय एवं चमत्कार हैं। वि.स. 2448 में सूरतगद्दी के भट्टारक सुरेंद्रकीर्तिजी दर्शन के लिए यहां पधारे। मंदिर को जीर्ण-शीर्ण देखकर मंदिर के जीर्णोद्धार की चर्चा श्रावकों से की। श्रावकों का न्याय से कमाया हुआ धन मंदिर जीर्णोद्धार में लगा और एक विशाल जिन मंदिर पक्का चूना व इंटों का शिखरबंद तैयार हो गया। वेदी में पुनः भगवान को विराजमान कर दिया गया। वहीं जिन मंदिर अभी वर्तमान में हैं। इसी मंदिर में प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथ भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। व्यापार के अभाव में सारे दिगम्बर जैनी मांडलगांव को छोड़कर अन्यत्र व्यापारार्थ चले गये। वर्तमान में अभी मात्र तीन ही दिगम्बर जैनियों के घर हैं, एक पूजारीजी का और दो अन्यका। यहां स्थानकवासी श्वेतांबर जैनों के घर अनेक हैं। जैनेत्तरों में करीब सभी जाति के लोग यहां बसे हुए हैं।
🙏🙏🙏मूलनायक श्री चंद्रप्रभु भगवान, अजितनाथ भगवान,मुनिसुव्रतनाथ भगवान🙏🙏🙏
🙏गणाधिपति गणधराचार्य 108 श्री कुंथुसागरजी महाराज🙏
👁️ मांडल क्षेत्र दर्शन 👁️
🏵️ श्री. पंचक्षेत्रपालजी बाबा 🏵️